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पहाड़ी राक्षस # शॉर्ट स्टोरी चैलेंज #हॉरर

#शॉर्ट स्टोरी चैलेंज


कहानी - पहाड़ी राक्षस

जॉनर- हॉरर

बेलापुर नाम का एक बहुत सुन्दर गांव था। वह गांव ऊंची पहाड़ियों से ढका हुआ था। इससे उस गांव की खूबसूरती में चार-चांद लग जाते थे। उस गांव की खूबसूरती और पहाड़ों की वजह से वह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी था। वहां रहने वाले आधे से ज्यादा लोगों का जीवन यापन पर्यटन की वजह से था। उसकी बढ़ती लोकप्रियता की वजह से वहां एक - दो व्यापारियों ने होटल भी खोल दिए। इससे गांव के लोगों की भी अच्छी कमाई होने लगी। 

कुछ समय पहले ही वहां पर सरकार की तरफ से एक माउंटेनियरिंग कैम्प भी खोला गया। बहुत से माउंटेनियर उस कैम्प में आते और वहां के पहाड़ों पर चढ़ते। यह कैम्प साल में तीन बार लगता था। उस समय में गांव में गज़ब की भीड़ रहती थी। गांव वाले भी इससे बहुत खुश थे। क्योंकि अब गांव के युवकों को रोजगार के नए अवसर यहीं प्राप्त हो रहे थे। उन्हें गांव छोड़ शहर में नहीं भागना पड़ता था। 

सब कुछ सही चल रहा था। पर फिर कुछ ऐसा हुआ कि गांव की किस्मत ही पलट गई। पर्यटकों से भरा रहने वाला वह गांव खाली हो गया। गांव वालों की रोजी-रोटी छिनने लगी। 

हुआ कुछ ऐसा था कि एक वर्ष पूर्व जब गांव में बसंत के महीने में माउंटेनियरिंग कैम्प लगा था तो कुछ अजीब सी घटनाएं हुई। 

उस महीने करीब पचास से भी ज़्यादा युवक युवतियां पहाड़ चढ़ने के लिए आए। पर्यटक भी उस महीने में सबसे ज़्यादा थे। एक दिन करीब पच्चीस लोगों का जत्था पहाड़ चढ़ना सीख रहा था। वह सुबह शुरू करते थे और शाम होने से पहले उतर आते थे। शिवम और कुणाल सबसे आगे थे। वह दोनों एक साथ सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गए। क्योंकि अभी बाकी सब को आने में समय लगने वाला था तो वह अपने सर की इजाज़त लेकर पहाड़ घूमने चले गए।

दोनों पहाड़ की वादियों में घूम रहे थे और ऊपर से नीचे का नज़ारा देख रहे थे। तभी उन्हें किसी के घुर्राने की आवाज़ आई। उन्होंने पलट कर देखा तो वहां एक विशालकाय शरीर वाला खोफनाक राक्षस खड़ा था।

उस राक्षस को देख शिवम और कुणाल दोनों डर गए। तभी कुणाल का पैर लड़खड़ा गया और वह पहाड़ी से नीचे गिरने ही वाला था कि शिवम ने उसका हाथ पकड़ लिया।

उन दोनों ने राक्षस से बचने के लिए भागने की कोशिश की पर वह नाकाम रहे। राक्षस ने उन दोनों को अपनी भुजाओं में दबोच लिया। वह इतना ताकतवर था कि उससे अपने आप को छुड़ाना उन दोनों के लिए ही बहुत मुश्किल था। राक्षस उन्हें घसीटा हुआ एक गुफा के अंदर ले गया।

शाम का वक्त हो चला था सभी लोग जो उस दिन पहाड़ पर चढ़े थे नीचे उतर आए थे। जब उनके सर ने गिनती करना आरंभ किया तो पाया कि शिवम और कुणाल वहां मौजूद नहीं थे। उन्होंने उनके दोस्तों से पूछा तो पता चला कि वह बहुत पहले ही पहाड़ चढ़ चुके थे। तो सर ने सोचा कि शायद वह जल्दी उतर गए होंगे और कैंप पर वापस पहुंच गए होंगे। पर कैंप पहुंच कर भी जब उन लोगों का पता नहीं चला तो सब बहुत घबरा गए । अंततः सब ने यह सोचा कि सुबह होते ही कुछ लोग फिर से पहाड़ पर चढेंगे और उन्हें ढूंढने का प्रयास करेंगे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि शायद उनके साथ कोई दुर्घटना ना हो गई हो।

अगले दिन उनके सर के साथ दो लोग और उस पहाड़ पर चढ़े। उन्होंने लगभग दो-तीन घंटों तक कुणाल और शिवम को ढूंढा। पर वह कहीं नहीं मिले तो वह निराश होकर पहाड़ से नीचे उतर आए। तब तक नीचे शिवम और कुणाल के दोस्तों ने उन दोनों को पूरे गांव में ढूंढा । पर असफलता ही उनके हाथ लगी।

अब उनके कोच भी धर्म संकट में फंस गए। क्योंकि बिना शिवम और कुणाल को लिए वह कैंप नहीं छोड़ सकते थे।इसलिए उन्होंने फिर से पहाड़ पर चढ़ने का फैसला किया।

अगले दिन सुबह कोच के साथ प्रकाश पहाड़ पर चढ़ा। 2 घंटे के इंतजार के बाद सब ने देखा कि प्रकाश बहुत ही डरा सहमा सा पहाड़ से उतर रहा है। कुछ लोगों ने उसे उतरने में मदद की। जब वह नीचे आया तो देखा कि उसके कपड़े जगह-जगह से फटे हुए थे और उसके शरीर पर बहुत सी खरोंच आई हुई थीं। सब प्रकाश को कैंप वापस ले गए । और उसकी मरहम पट्टी करी।जब वह थोड़ा बोलने की हालत में हुआ तो सब ने उससे पूछा कि उसकी ऐसी हालत कैसे हुई और उनके कोच कहां है?

प्रकाश ने उन्हें बताया कि जब वह दोनों ऊपर पहाड़ की चोटी पर पहुंचे और शिवम और कुणाल को आवाज़ लगा लगा कर ढ़ूंढ रहे थे तब उनके सामने एक बहुत बड़ा विशालकाय राक्षस आकर खड़ा हो गया। उस राक्षस को देख दोनों के होश उड़ गए । उस राक्षस का शरीर बिल्कुल काला था। उसकी आंखें बेहद लाल थी और दांत बहुत ही अजीब तरीके से बाहर को निकले हुए थे।

उन्होंने वहां से भागने का भरसक प्रयास किया तभी उस राक्षस ने कोच को अपने बाजूओं में दबोच लिया और प्रकाश को पकड़ने की कोशिश करने लगा। कोच ने बहुत हाथ-पैर मारे पर वह उस राक्षस से निपट नहीं पाया । पर प्रकाश किसी तरह से जान बचाकर वहां से भागने में सफल हो गया। जब पीछे मुड़ प्रकाश ने देखा तो वह राक्षस कोच को एक गुफा में ले जाता दिखाई दिया। उसके बाद उसने कोच की चीखने की आवाज़ सुनी और फिर वहां सन्नाटा छा गया। प्रकाश इतना डर गया कि उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह वापस जाकर देखे कि क्या हुआ था।

अब सबको यकीन हो चला था कि कुणाल और शिवम के साथ भी यही हुआ होगा। सब इस बात से आश्वस्त हो चुके थे कि पहाड़ की चोटी पर एक खतरनाक खूंखार राक्षस रहता है। और जो भी उस चोटी तक पहुंचेगा वह राक्षस उसे खा जाएगा।

यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई। आसपास के सभी गांव को इस बारे में पता चल गया। यहां तक कि यह बात शहर तक भी पहुंच गई। अब बेलापुर गांव में बहुत कम पर्यटक आने लगे। सब उस राक्षस से डर गए थे।सरकार ने माउंटेनियरिंग कैंप बंद कर दिया जिससे बेलापुर गांव के लोगों को बहुत भारी नुकसान हुआ।

धीरे धीरे पर्यटक भी कम होने लगे जिससे गांव के लोगों का व्यापार बंद होने लगा। साल भर हो चुका था बेलापुर गांव के लोगों की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। क्योंकि आधे से ज्यादा गांव पर्यटकों और पहाड़ पर चढ़ने आए लड़के और लड़कियों के कैंप की वजह से ही अपना गुज़ारा चलाते थे। गांव की ऐसी हालत देख वहां के सरपंच ने पंचायत बुलाई जिसमें समस्त गांव के लोग उपस्थित हुए।

" आज हमारा गांव और गांव के लोग बहुत ही कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं हमें यह समझ नहीं आ रहा कि हम क्या करें?" सरपंच ने गांव वालों को संबोधित करते हुए कहा।

"सरपंच जी क्यों ना हम अपनी विपदा सरकार को बताएं। हो सकता है कि सरकार इसमें हमारी कुछ मदद करे। वह कुछ आर्मी के लोगों को भेजकर उस राक्षस का खात्मा करवा दे।" एक नौजवान युवक समीर ने बोला।

"मैंने खुद जिला अधिकारी से बात करी थी। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वह हमारी समस्या सरकार के सामने रखेंगे। पर उस बात को 5 महीने गुज़र गए । मैंने दोबारा भी उनसे संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि ऐसे कामों में समय लगता है। क्योंकि सरकार के पास और भी काम हैं।" सरपंच ने सबको बताया।

"तो अब हमें अपनी समस्या का निवारण खुद ही करना पड़ेगा। हम सरकार के भरोसे पर नहीं बैठ सकते। यदि जल्द पर्यटक वापस नहीं आए तो हम सब के खाने पीने की भी मुश्किल हो जाएगी।" समीर के साथ खड़े युवक अमन ने बोला।

"पर हम इस समस्या को खुद कैसे निपट सकते हैं? हम कैसे उस राक्षस का सामना करेंगे ? अगर कोई पहाड़ पर चढ़ा भी तो वह वापस नहीं आएगा।" गांव के एक वृद्ध ने बोला।

तभी समीर और अमन के साथ कुछ और नौजवान भीड़ से निकलकर आगे आए और बोले,"समीर ठीक कह रहा है। अब हमें पहाड़ पर चढ़कर उस राक्षस का सामना करना पड़ेगा। और उसे ख़त्म करना पड़ेगा वरना हम सब खत्म हो जाएंगे। अब हमारी परिस्थिति ऐसी है कि इसके अलावा हमारे पास और कोई चारा भी नहीं बचा है ।अब तो करो या मरो वाली परिस्थिति है।"

पंचायत में काफी देर तक बहस चलती रही। उन नौजवानों के माता-पिता उन्हें पहाड़ पर जाने की इजाजत नहीं दे रहे थे। पर वह सब लोग अटल थे कि इस चुनौती का सामना उन्हें खुद ही करना पड़ेगा। कोई और आकर उन्हें इस परिस्थिति से बाहर नहीं निकालेगा। यदि उन्होंने जल्द कुछ कदम नहीं उठाए तो जो दो होटल गांव में पर्यटकों के लिए बनाए गए थे वह भी बंद हो जाएंगे। उससे बहुत से युवक जो उन होटल में काम करते हैं वह बेरोजगार हो जाएंगे। काफी बहस के बाद सब यह बात मान गए और रविवार का दिन मुकम्मल किया गया।

शनिवार की रात सब गांव वाले फिर से पंचायत में इकट्ठे हुए। पर बहस के लिए नहीं अपितु समीर , अमन , रमन और मुकेश को दुआएं देने के लिए। ताकि वह अपने काम में सफल होकर लौटे। चारों लड़कों ने अपने बैग तैयार कर रखे थे। उसमें उन्होंने मशाल जलाने के लिए लकड़ियां रस्सियां चाकू और कुछ हथियार जो राक्षस को मारने के काम आएं, वह सब रख लिए थे।

अगले दिन रविवार को उन्होंने पहाड़ पर चढ़ाई करने शुरू करी। शाम होने से पहले ही वह सब पहाड़ की चोटी पर पहुंच चुके थे । अब उन्होंने अपने बैग से लकड़ियां निकाल उन्हें जला लिया जिससे वह सही से रास्ता देख सकें। वह जोर-जोर से शोर मचाते हुए चल रहे थे जिससे उस राक्षस को आभास हो जाए कि कुछ मनुष्य उसका खाना बनने के लिए आ गए हैं। और हुआ भी कुछ ऐसा ही।

वह पहाड़ की पथरीली ज़मीन पर चल रहे थे कि अचानक उनको किसी के घुर्राने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह समझ गए कि उनका शिकार उनके जाल में फंस चुका है।

उन सब के हाथों में जलती हुई मशालें थीं। राक्षस के पीछे होने का आभास पाते ही वह सब एक साथ पलटे और मशाल हिलाते हुए राक्षस को अपने से दूर रखने का प्रयत्न करने लगे।

पर वहां अपने आप को जितना चालाक और राक्षस को जितना कमज़ोर समझ रहे थे ऐसा नहीं था। आग देखकर राक्षस घबरा जरूर गया था पर उसने फुर्ती दिखाते हुए कूदकर अमन और समीर को धक्का मार् कर ज़मीन पर पटक दिया। और रमन और मुकेश को अपनी ताकतवर भुजाओं में जकड़ लिया। रमन और मुकेश अपनी ताकत का पूरा इस्तेमाल करने पर भी उसके चुंगल से छूट नहीं पा रहे थे। तभी रमन ने राक्षस के पेट में अपनी कोहनी से बहुत तेज़ चोट पहुंचाई। कुछ पल के लिए राक्षस की पकड़ ढीली हो गई पर उसने फिर से उन्हें जकड़ लिया और अपने दांतो से रमन के कंधे पर काट लिया जिससे रमन दर्द से कराह उठा। 

समीर ने जब यह देखा तो उसने बिजली की फुर्ती दिखाते हुए अपने बैग से चाकू निकाल राक्षस पर दूर से फेंका जो उसकी जांघों पर जाकर लगा। चाकू के हमले से राक्षस की पकड़ ढीली हो गई ।और रमन और मुकेश ने अपने आपको उससे छुड़वा लिया। तभी अमन ने भी अपना चाकू निकाल उसके ऊपर फेंका जो उसकी दूसरी जांघों पर जाकर लगा। अब उह राक्षस की ताकत थोड़ी ढीली पड़ गई।

अब चारों लड़कों ने अपनी-अपनी मशालें उठा लीं और उस राक्षस को चारों ओर से घेर लिया। वह राक्षस तिलमिला उठा और एक भयानक आवाज में घुर्राने लगा। उसकी आवाज सुन वह चारों थोड़ा डर गए पर उन्होंने अपने चेहरे पर भय की लकीरें नहीं आने दीं। अब उन्होंने 1- 1 हथियार अपने हाथों में पकड़ लिया।

इससे पहले कि उनमें से कोई राक्षस पर प्रहार करता उस राक्षस ने एक बहुत तेज़ औजार समीर की तरफ फेंका और वह सीधा समीर के कंधे पर आकर लगा जिससे समीर का कंधा लहूलुहान हो गया। राक्षस के इस प्रकार से और समीर की हालत देखकर तीनो दोस्त थोड़ा घबरा गए पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अमन ने तेज़ी से उस राक्षस के पेट में चाकू घुसा दिया। इससे पहले कि वह राक्षस कुछ समझ पाता समीर ने पीछे से उसके ऊपर कुल्हाड़ी से वार किया जिससे वह जमीन पर गिर पड़ा। 

उसके जमीन पर गिरते ही रमन ने उसके पैरों को तेज़ी से रस्सी से बांधना शुरू कर दिया। अपने पैरों को बंधता देख राक्षस ने पूरा दम लगा कर रमन को अपने पैरों से धक्का मारा। रमन बहुत दूर जाकर गिरा। पर जैसे तैसे उसने अपने आप को पहाड़ से गिरने से बचा लिया। 

अब वक्त आ गया था कि राक्षस को उसके अंजाम तक पहुंचाया जाए। समीर ने फुर्ती से अपने बैग से पेट्रोल का कनस्तर निकाला और उस राक्षस को उससे भिगो दिया। क्योंकि राक्षस के हाथ पैर बंधे हुए थे इसलिए वह कुछ नहीं कर पाया। समीर के इशारे पर रमन ने जलती हुई मशाल उस राक्षस के ऊपर फेंक दी। फिर समीर ने भी अपनी मशाल उसके ऊपर फेंक दी। 

धीरे-धीरे राक्षस आग की लपटों से घिर गया और चीखने चिल्लाने लगा। उसका पूरा बदन झुलसने लगा और कुछ ही समय बाद वह राख में तब्दील हो गया। 

चारों दोस्त उसकी राख के सामने बैठ गए। सब ने एक दूसरे के जख्मों पर मरहम पट्टी करी। रात को पहाड़ से उतरना खतरनाक हो सकता था इसलिए वह चारों वहीं बैठ कर सुबह का इंतजार करने लगे।

सुबह होते ही उन्होंने सबसे पहले राक्षस की ठंडी राख को समेटकर एक थैले में भर लिया। और फिर धीरे-धीरे पहाड़ उतरने लगे। क्योंकि वह बहुत घायल हो चुके थे इसलिए वह संभल कर उतर रहे थे। दोपहर बाद वह नीचे पहुंच गए।

सारे गांव के लोग रात से ही उनका वहां इंतजार कर रहे थे। उन चारों को वापस आता देख ना केवल उनके माता-पिता बल्कि समस्त गांव वालों के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। उनको बुरी तरह घायल देख उनके माता-पिता बहुत व्याकुल हो उठे । पर वह सब अपने बेटों की बहादुरी पर गर्व महसूस कर रहे थे। उन चारों ने सरपंच के हाथ में राख से भरा थैला थमाया और बोले," हमने उस राक्षस को इस राख में तब्दील कर दिया है। अब वह कभी हमारे गांव की खुशियों को बर्बाद नहीं कर पाएगा। अब फिर से हमारा गांव खुशहाल हो जाएगा।

पूरे गांव को उन पर गर्व था। यह बात जब सरकार को पता चली तो उन्होंने उन चारों लड़कों को वीरता पुरस्कार दिया। धीरे धीरे बेलापुर गांव में वापस रौनक आ गई। पर्यटकों से वह गांव फिर से खुशहाल हो उठा। माउंटेनियरिंग कैंप भी फिर से शुरू हो गए।  

सरपंच यह सब देख बहुत खुश हुआ और उसने उन चारों लड़कों को बोला," हर युग में राक्षसों का विनाश आवश्यक होता है । जो भी मानव जाति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा उसका विनाश तय है। फिर चाहे उसका संहार मनुष्य के हाथों से हो या भगवान के अवतार के हाथों से।"

🙏
आस्था सिंघल
#शार्ट स्टोरी चैलेंज
#हॉरर

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4 Comments

Abhinav ji

06-May-2022 06:52 AM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

20-Apr-2022 03:32 PM

बहुत खूबसूरत

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Gunjan Kamal

19-Apr-2022 02:25 PM

बेहतरीन अभिव्यक्ति

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